दोनों रहिमन एक से ,जो लो बोलत नाही । जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माही।।
जब चीजें चली जाती हैं तो स्वतंत्रता आती है
1797 - 1869
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
उन लोगों के बारे में जिन्हें मैं नहीं जानता (कविता)
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जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ उस ने सदियों की जुदाई दी है
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियारी छाई,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!